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मादक नयनों के गीत बहुत गाये तुमने,
इन कोमल भुज्वल्लरियों की बातें छोडो,
उन्माद जगाने वाले अधरों के मद की,
ये विधु-तारों से सजी हुई रातें छोडो. १
छोडो अब उन गीतों को होती है जिनमें,
बातें गोरी के नूपुर की, कोमल-कर की.
चंचल कटाक्ष की बातें, कंगन-चूड़ी की,
शीतल समीर, सुन्दर मौसम, स्वप्निल स्वर की. २
इन गीतों-ग़ज़लों का कोई औचित्य नहीं,
सुन जिसे उलझता नर रक्ताभ अधर में है.
सुर में सितार पर गीत गा रहे हो नीचे,
विद्रूप हँसी हँस रही मौत ऊपर में है. ३
धू-धू कर जलते उत्पीडन की भट्ठी में,
जनता की करुण पुकार नहीं सुनते हो तुम.
भर पेट अन्न मुश्किल से मिलता है सबको,
श्रृंगार-गीत के भीत विहँस चुनते हो तुम. ४
वातोनुकूल में स्वयं बैठ भोजन करते,
स्तुति कर राजवंशियों की, भरमाते हो.
कितने बेटे चढ़ रहे नित्य बलिवेदी पर,
तुम बैठ बाग़ में गीत भ्रमर के गाते हो. ५
हतप्रभ बैठी घुटनों में अपना सिर भींचे,
माता के तन पर ढेर लगा है चीथड़ों का.
चूड़ी पहने, श्रृंगार किये, बाहें चमका,
ठुमरी के मादक गीत सुनाते हिजड़ो का. ६
सिर पर जब बज्र तुम्हारे आ घहरायेगा,
मुख मलिन किये तुम मदद मांगने जाओगे.
तब प्रश्न करेगा तुमसे विगत तुम्हारा ही,
सिर झुका ग्लानि से, कुंठित हो मर जाओगे. ७
उर्वशी-मेनका आदि कम-बालाओं के,
रस भरे गीत के बदले में अंगारा दो.
बागों में गाती पिक के कोमल गान नहीं,
दे सको अगर तो हर-हर-बम का नारा दो. ८
तुम ऐसे गीत सुना जो मन में आग भरे,
आदम के बेटों के दिल में ताप-त्याग भरे.
उष्णता लहू में भरे, रगों में जोश भरे,
मुखरित होकर वाणी प्रचंड उद्घोष करे. ९
निष्प्राण चेतना में आयें वह मेघराग,
मुर्दों में फूँके प्राण, गीत वह तुम गाओ.
हो रुधिर उष्ण, नयनों से लपके अग्निशिखा,
मदिरा ऐसी प्याले में साकी भर लाओ. 10
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