Menu
blogid : 7272 postid : 33

मादक नयनों के गीत बहुत

agnipusp
agnipusp
  • 84 Posts
  • 3277 Comments

मादक नयनों के गीत बहुत गाये तुमने,
इन कोमल भुज्वल्लरियों की बातें छोडो,
उन्माद जगाने वाले अधरों के मद की,
ये विधु-तारों से सजी हुई रातें छोडो. १
छोडो अब उन गीतों को होती है जिनमें,
बातें गोरी के नूपुर की, कोमल-कर की.
चंचल कटाक्ष की बातें, कंगन-चूड़ी की,
शीतल समीर, सुन्दर मौसम, स्वप्निल स्वर की. २
इन गीतों-ग़ज़लों का कोई औचित्य नहीं,
सुन जिसे उलझता नर रक्ताभ अधर में है.
सुर में सितार पर गीत गा रहे हो नीचे,
विद्रूप हँसी हँस रही मौत ऊपर में है. ३
धू-धू कर जलते उत्पीडन की भट्ठी में,
जनता की करुण पुकार नहीं सुनते हो तुम.
भर पेट अन्न मुश्किल से मिलता है सबको,
श्रृंगार-गीत के भीत विहँस चुनते हो तुम. ४
वातोनुकूल में स्वयं बैठ भोजन करते,
स्तुति कर राजवंशियों की, भरमाते हो.
कितने बेटे चढ़ रहे नित्य बलिवेदी पर,
तुम बैठ बाग़ में गीत भ्रमर के गाते हो. ५
हतप्रभ बैठी घुटनों में अपना सिर भींचे,
माता के तन पर ढेर लगा है चीथड़ों का.
चूड़ी पहने, श्रृंगार किये, बाहें चमका,
ठुमरी के मादक गीत सुनाते हिजड़ो का. ६
सिर पर जब बज्र तुम्हारे आ घहरायेगा,
मुख मलिन किये तुम मदद मांगने जाओगे.
तब प्रश्न करेगा तुमसे विगत तुम्हारा ही,
सिर झुका ग्लानि से, कुंठित हो मर जाओगे. ७
उर्वशी-मेनका आदि कम-बालाओं के,
रस भरे गीत के बदले में अंगारा दो.
बागों में गाती पिक के कोमल गान नहीं,
दे सको अगर तो हर-हर-बम का नारा दो. ८
तुम ऐसे गीत सुना जो मन में आग भरे,
आदम के बेटों के दिल में ताप-त्याग भरे.
उष्णता लहू में भरे, रगों में जोश भरे,
मुखरित होकर वाणी प्रचंड उद्घोष करे. ९
निष्प्राण चेतना में आयें वह मेघराग,
मुर्दों में फूँके प्राण, गीत वह तुम गाओ.
हो रुधिर उष्ण, नयनों से लपके अग्निशिखा,
मदिरा ऐसी प्याले में साकी भर लाओ. 10

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh