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आम आदमी की चिंता———–
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कितना उदास यह दिन निकले…….
जगते ही सिर चढ़ती चिंता, बनिये का देना है उधार,
बीवी की साडी लेनी है, जो फटकर हो गयी तार-तार.
बचवा का फीस चुकाना है, वरना स्कूल न जाएगा,
जीवन सुधार लेगा अपना, जो थोडा सा पढ़ जाएगा.
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मुनिया भी अब हो गयी बड़ी, माँ का सब काम लगी करने,
बाबू-माई का दम्मा भी, पहले से लगा जोर भरने.
कैसे क्या करूँ, कहाँ जाऊं, कैसे कुछ पैसे पा जाऊं ,
हैं सभी जरूरी, कौन बाद में, और करूँ किसको पहले ?
कितना उदास यह दिन निकले…….
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ख़ास आदमी की चिंता————–
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कितनी अलसाई सुबह लगे…….
कल रात मॉल में थोडा सा ज्यादा मुझको चढ़ गया नशा,
लेकिन उस दोस्त की बीवी ने क्या गज़ब जोर से मुझे कसा.
अब लेकर उसको देना है, एक नया चमकता स्वर्नहार,
जितना ही गिफ्ट उसे दूंगा, उतना देगी वह मुझे प्यार.
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गाडी का ए. सी. है खराब, उसको भी ठीक कराना है,
मुन्नी-शीला कल आएँगी, उनपर भी धाक ज़माना है.
लेकर छोटा सा एक पैग, कुछ देर और सो जाते हैं,
चुस्ती ही नहीं बदन में, हम लगते हैं कितने थके-थके.
कितनी अलसाई सुबह लगे…….
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