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सादर नम्र निवेदन !!

agnipusp
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पिछले दिनों मान्यवर परवीन जी का एक आह्वान प्रकाशित हुआ. अनेक प्रबुद्धजनों ने अपने विचार रखे. पक्ष में भी – विपक्ष में भी. पुनः आदरणीय श्री शाही जी का एक लेख आया. उसपर भी अनेक सुधीजनों ने अपने विचार रखे. बहुत सुखद लगा. इसीलिए ह्रदय में भय लिए हुए मैं भी अपने कुछ विचार रखना चाहता हूँ.
इस मंच से कुछ दिन पूर्व ही मेरा जुडाव हुआ.सभी बंधुओं ने सहर्ष मेरा उत्साह बढ़ाया. एक बात तो पूर्ण सत्य है कि हम कोई ख्यातिलब्द्ध या स्थापित रचनाकार नहीं हैं बल्कि उत्साही रचनाकार हैं. मेरी अपने लेखन की प्रिय विधा काव्य है. इस मंच पर मेरे से वरिष्ठ अनेक कवि और कवियित्री हैं, जिनकी रचनाओं के भाव मुग्ध कर देने वाले होते हैं परन्तु शब्द संयोजन और तारतम्य खटकने वाला होता है, टाइपिंग की गलतियां रचना की समस्त भावना और सुन्दरता को धूमिल कर देती है.
कविता की पंक्तियाँ ह्रदय की गहराइयों से निकलती है, जो अपने सौरभ से पाठक को सराबोर कर देती है. काव्याव्लोकन से प्राप्त आनंद ही काव्यानंद है. पर इसकी प्राप्ति के लिए कुछ नियम व शर्तें हैं. भारतीय काव्यशास्त्र परम्परा काव्य से प्राप्त रसास्वाद को “ब्रम्हानंद” सहोदर कहती है. “”जिस प्रकार कोई योगी विविध यौगिक क्रियाओं एवं यम-नियमों की साधना द्वारा जगत से परे एक अलौकिक आनंद की प्राप्ति करता है, उसी प्रकार सहृदय व्यक्ति काव्य के अनुशीलन से एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति करता है, जो योगियों के ब्रम्हानंद के समकक्ष होता है, इसीलिए इसे ब्रम्हानंद सहोदर कहा जाता है.””
इस मंच पर एक-से-एक अच्छी-अच्छी प्रतिभाएं हैं. परन्तु उनमें अपने को और निखारने की स्वतःस्फूर्त भावना का अभाव दिखता है. शायद वे अपनी रचना को पोस्ट करने के पूर्व दुहराते भी नहीं हैं, जिससे उसमें अनेक त्रुटियाँ रह जाती हैं. स्वयं की लिखी रचना को भी अगर बार-बार पढ़ा जाय तो उसमें सुधार की अनेक गुंजाइश निकल आती है, जिसके बाद उस रचना के सौन्दर्य और प्रभाव में वृद्धि हो जाती है. वर्तनी की गलतियां, स्त्रीलिंग-पुलिंग की गलतियां, ये सब किसी उत्कृष्ट रचना के प्रभाव को भी नष्ट कर देती हैं.
बहुत से रचनाकार टिप्पणी के अभाव में ऐसा सोचते होंगे कि उनकी रचना अच्छी नहीं है. बहुत से रचनाकार ऐसा मानते हैं कि अधिक टिप्पणी से कोई रचना अच्छी हो जाती है. कुछ रचनाकार ऐसा मानते हैं कि यह “गिव एंड टेक” वाली बात है. तुम मुझे दो, मैं तुम्हें दूंगा. मेरे विचार से इस मंच से वही जुड़ेगा जो सर्जक है, जो रचनाधर्मी है. यहाँ कोई प्रत्यक्ष श्रोता या दर्शक नहीं हैं, जो हमारी प्रस्तुतियों पर तालियाँ बजाकर हमारा उत्साहवर्धन करेंगे. इस मंच से सभी प्रबुद्धजन ही जुड़ेंगे. जो रचनाएं अच्छी होंगी, पठनीय होंगी, उसे सराहना मिलेगी ही. परन्तु अगर आप उस सराहना को हेय दृष्टि से देखेंगे, या शिष्टाचार की सामान्य विधा का पालन भी नहीं करेंगे, तो सराहना करनेवाला हतोत्साहित होकर आपकी रचना पढ़ेगा तो जरूर, पर अपनी प्रतिक्रया के दो शब्द कहने से कतरा जाएगा. हम आपके घर जाएँ, और आप स्वागत करना तो दूर हमारी तरफ आँख उठाकर भी न देखें तो कौन ऐसी जगह दुबारा जाना पसंद करेगा. कोई भी सम्बन्ध मेलजोल और संवाद के आदान-प्रदान से ही बढ़ता है. जो इससे कतरायेगा, उसे लोग स्वतः एकांत पसंद मान लेते हैं.
मुझे लग रहा है कि मेरी बात अब उबाऊ और अप्रिय होने के कगार पर जा रही है. मेरी ये बातें इस मंच के प्रबुद्ध, उत्साही, नवागत रचनाकारों को आपस में और अधिक जोड़ने व अपनी रचनाओं में और निखार लाने के लिए प्रेरित करना है.
भूल-चूक के लिए क्षमा !!!

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