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आतंकवादियों से ………!!!

agnipusp
agnipusp
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आतंकवाद सम्पूर्ण विश्व के लिए ख़तरा बना हुआ है. अभी दिल्ली में
विस्फोट हुआ. इन आतंकवादी घटनाओं में केवल निर्दोषों की ही बलि
चढ़ती है. इन हत्यारों को बच्चे-युवा-वृद्ध से कोई मतलब नहीं, इन्हें तो
बस दहशत फैलाना है. पर किसलिए ?????
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आतंकवादियों ! तुमसे हमको है कहना, चुप थे अबतक पर कठिन हुआ अब चुप रहना !
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भोले अबोध शिशु नहीं उड़ा दोगे गरदन, हम स्वयं किया करते आगे बढ़ मृत्यु वरण !
हैं दावानल विकराल लपट में आओगे, तुम नहीं लौह, सुकुमार देह गल जाओगे !!
निर्दोषों का शोणित सिर पर चढ़ बोलेगा, पातक बन कालनाग फ़न अपना खोलेगा !
जिनके लोहू से खेली थी होली तुमने, जिनके बेटों की लाश गिराई थी तुमने !
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वे रुण्ड-मुण्ड भी बैर साधने आयेंगे, सिन्दूर नारियों के प्रतिशोध चुकायेंगे !
वे अबलायें आयेंगी जिनका शीलभंग, तुम करते थे मन में लेकर कुत्सित उमंग !!
उन चीत्कारों से डगमग डोलेगा आँगन, तुमसे सवाल पूछेंगे वे चूड़ी-कंगन !
दुधमुंहे बालकों ने क्या किया तुम्हारा था, शूरता दिखाते हुए जिन्हें संहारा था !
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देखा होगा जब जननी ने बच्चे का शव, कलतक जो था कुल का दीपक, घर का गौरव !
उसकी भू-लुंठित धुल भरी निर्जीव देह, को देख अचानक सूखा होगा ह्रदय स्नेह !!
उस जननी के आहों का भान नहीं तुमको, उसकी करालता का अनुमान नहीं तुमको !!
वे आहें बनकर कालमेघ जब गरजेंगी, इस धरती को अंगार-वृष्टि से भर देंगी !
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तारे-ग्रह सब टूटेंगे, चपला कड़केगी, हो क्रुद्ध चंडिका तुम्हें पाश में जकडेगी !!
होगा भीषण विस्फोट समय वह आयेगा, हो क्रान्त मृत्यु-देवी को पास बुलाएगा !!
जब कालचक्र घूमेगा तुम पिस जाओगे, सिर पर डोलेगा मरण-पाश चिल्लाओगे !!
बन्दूक-तोप हाथों में ही रह जायेंगे, यमदूत भैरवी धरती पर जब गायेंगे !!
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जिस गोली के बल पर विध्वंस मचाते हो, बेबस जन को इंगित पर नाच नचाते हो !
अनजान दिशा से सन-सन करती आयेगी, वह गोली प्राण तुम्हारा भी ले जायेगी !!
जिस स्वर्ण-कोष के लिए गा रहे मरण गीत, जिस स्वार्थपूर्ति के लिए त्यागते सहज प्रीत !
वे सोने के गोले कुछ काम न आयेंगे, दुष्कर्म या कि सत्कर्म शेष रह जायेंगे !!
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उस दिन की तुम करते हो क्यों कल्पना नहीं, पश्चात युद्ध के होगी जब यह शान्त मही !!
बच्चों को कौन तुम्हारे गले लगाएगा, आतंकवादियों की संतति कहलायेगा !
गरदन झुक जायेगी पापों का बोझ लिए, दुष्कर्मों से, जो उनलोगों ने नहीं किये !!
नत नयन किये पथ में आयेंगे-जायेंगे, वे सुयश नहीं अपकीर्ती हमेशा पायेंगे !!
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जिस पुण्यलाभ के लिए बहाते हो शोणित, पुत्रों को, पत्नी, माता को करते पीड़ित !
जिनके हित काण्ड-कुकाण्ड सभी कुछ करते हो, बेहतर भविष्य हो जाय इसलिए मरते हो !
वे नाम तुम्हारा लेने से कतरायेंगे, उनके हिस्से दुष्कर्म तुम्हारे आयेंगे !!
मैं देख रहा भवितव्य भले तुम मत देखो, उतरेगा पाप तुम्हारा उनको डसने को !!
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वे पापी नर तुमसे भी बढ़कर हैं दोषी, कुंठा-उत्पीडन-अनाचार के परितोषी !!
जनता ने रक्षा हित आसन पर बैठाया, लेकिन उसने जनता को ही नोचा-खाया !!
पर एक बात कहनी है इन मतवालों से, भोली जनता को मूढ़ समझने वालों से !
यह सवा अरब जनता जब भी फुंकारेगी, बन कालपवन हहरायेगी-हुँकारेगी !
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आकाश-मृत्यु-पाताल लोक में भागोगे, किस देव-असुर से शरण स्वयं हित मांगोगे !
है नियति बहुत बलवान खौफ इसका खाओ, जीवन जबतक कुछ पुन्य-सर्जना कर जाओ !!

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