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काव्य-सुन्दरि का आविर्भाव !!

agnipusp
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KAVYA
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शून्य होता प्रस्फुटित, हिम सी पिघलती चेतना !
जब तरंगों सी मथित होती ह्रदय उद्वेलना !!
जब नसों में रक्त का ज्वालामुखी हुंकारता !
जब कोई उर की अतल गहराइयों में झाँकता !
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मन-गगन में जब मचलते इन्द्रधनुषी भाव-घन !
शब्द बूँदें बन बरसतीं, महक उठता है चमन !!
भावना की मधुर धारा, स्वच्छ जल के स्रोत सी !
मुक्त हो बहतीं हैं जैसे, मुक्त हो बहता पवन !!
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बुलबुलों से फूटने लगते विचारों के प्रसून !
कल्पना, संभावना या सत्यता की गाँठ बुन !!
काव्य-सुन्दरि लेखनी की नोंक पर रखते कदम !
तब उतरती कागजों पर चीरकर घनघोर तम !!
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ज्योति जल जाती ह्रदय में, दीप्त हो जाता है मन !
लेखनी की ताल पर हर शब्द करते हैं नमन !!
नवसृजित नव काव्य-बाला ले मदिर अंगड़ाइयां !
अंक से अपने लगाकर दूर कर देती थकन !!

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