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कलम नहीं झुक सकती है !

agnipusp
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निकलो अपने स्वप्नलोक से, परिवर्तन हैं होनेवाले !
ओ वैभव के कुटिल खिलाड़ी, स्वर्णासन पर सोने वाले !
नियति-चक्र अतुलित बलशाली, रोके क्या रुक सकती है ?
चाहे जितना जोर लगा लो, कलम नहीं झुक सकती है !!
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आशा और भावनाओं से कभी किसी के मत खेलो !
नंगी ऊंगली जल जायेगी, अग्नि-ज्वाल को मत छेड़ो !
स्वाभिमान को छोड़ हाट में, सब चीजें मिल सकती हैं !
चाहे जितना जोर लगा लो, कलम नहीं झुक सकती है !!
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प्रज्ञा होती है अमूल्य, क्या इसका मोल लगाओगे !
एक वार भी इस प्रज्ञा का, झेल नहीं तुम पाओगे !
धन से मोटे गद्दे मिलते, नींद नहीं मिल सकती है !
चाहे जितना जोर लगा लो, कलम नहीं झुक सकती है !!
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ओ परदे के पीछे से, सरकार चलानेवालों सुन लो !
सम्मुख हँस, होकर अदृश्य फिर घात लगानेवालों सुन लो !
निकलो बाहर तम-कारा से, मुक्ति तभी मिल सकती है !
चाहे जितना जोर लगा लो, कलम नहीं झुक सकती है !!

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