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नारी महान है !
नारी माता है !
नारी शक्ति है !
नारी ममता की मूरत है !
नारी अबला है !
नारी भोग्या है !
……इस तरह के अनेक वाक्य नारियों के सम्बन्ध में लिखे गए हैं ! नारियों को पुरुष द्वारा
प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें दबाकर रखा जाता है, उनके साथ हिंसात्मक व्यवहार किया
जाता है, आदि पर अनेकों लेख और पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और लिखी जा रही हैं !
……परन्तु वास्तविकता क्या यही है ? क्या हम अपनी माता की इज्जत नहीं करते ? क्या
हम अपनी बहन को प्यार नहीं करते ? क्या हम अपनी बेटी से स्नेह नहीं रखते ? क्या हम
अपनी पत्नी को मारते-पीटते हैं ? क्या हम अपनी चाचियों, बुआओं, मामियों, फूफियों या
अन्य महिला रिश्तेदारों के साथ हिंसक, अभद्र या दोयम दर्जे का विचार रखते हैं ? क्या
हम अपने अडोस-पड़ोस की समस्त स्त्रियों को गलत निगाहों से देखते हैं ?
अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह विलाप क्यों ? ऐसे लेखों द्वारा हम क्या बताना चाहते हैं ?
क्या हम महिला और पुरुष के मध्य उगे प्रेम के पौधे में गरम पानी तो नहीं डाल रहे हैं !
………मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, प्रतिभा पाटिल, कल्पना चावला, किरण बेदी या इन जैसी
उच्च कोटि के आदर्शों वाली महिलाओं को कौन प्रतिष्ठा नहीं देगा ? परन्तु यहीं प्रतिष्ठा अगर
भंवरी देवी, सन्नी लेओन या इस तरह की निम्नस्तरीय चरित्रवाली देहदर्शना और कुटिल
महिलायें भी चाहने लगें, और इसलिए की वे महिला हैं, तो यह कहाँ तक उचित होगा ?
………नारी का माता होना उसकी स्वयं द्वारा अर्जित कोई विशेषता नहीं है, बल्कि यह
प्रकृति द्वारा की गई व्यवस्था है ! कोई भी सृजन योग से होता है ! अकेला पुरुष और अकेली
नारी दोनों व्यर्थ हैं ! दोनों एक दूसरेके लिए आवश्यक हैं !
……..ऐसे एकतरफा लेख महिला-पुरुष के प्रेम की फुलवारी में आग ही लगाते हैं, उसे सींचते
नहीं ! नारी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं ! न वे प्रताड़ित हैं, न दोयम दर्जे की हैं ! नारियों
के सम्मान की रक्षा के लिए पुरुष अपना सर तक कटा देते हैं !
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