agnipusp
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मैं अंधेरों में भटकता ही रहा !
भाग्य मेरा मुझको छलता ही रहा !
फासले से फूल सा मोहक लगा !
ऊंगलियों में खार सा चुभता रहा !!
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तन हुआ जर्जर थकन से चूर हूँ !
क्षीण ताकत हो गई, मजबूर हूँ !
नदी के ढहते किनारे पर खडा !
चैन से, खुशियों से कितना दूर हूँ !!
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जिन्दगी भर दर्द को पीता रहा !
नियति की चादर फटी सीता रहा !
उम्र भर चलता रहा जिस राह वो,
कभी रामायण, कभी गीता रहा !!
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(chitr google se saabhaar)
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