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जनतंत्र की चीखें !!!

agnipusp
agnipusp
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BHARAT DURDASA
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अभी मेरे नयन में आँसुओं की धार बाकी है !
तुम्हारे नोचने को अस्थियाँ दो-चार बाकी हैं !
झिंझोड़ा है जिसे तुमने, वहीँ जनतंत्र मैं घायल !
थके-जर्जर बदन में कुछ तेरा आहार बाकी है !!
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अरे श्वानों, सियारों, गीदड़ों इसको भी खा जाओ !
अरे ओ दानवों ! मेरा समूचा तन निगल जाओ !
मगर अब भी जो मेरे आसरे सन्तान है मेरी,
तुम्हें चेतावनी है शीघ्र उनसे दूर हट जाओ !
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समय विपरीत मेरा आज है, खुश हो लो जी भर के !
अमरता का मुझे वरदान, जी जाऊँगा मैं मर के !
नियति की वक्र चालों को नहीं पहचान पायेगा !
यही रह जायेगी दौलत, मरेगा आह भर-भर के !!
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(चित्र मेरी स्वयं की पेंटिंग है)

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