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मरा नहीं है दुर्योधन संग्राम शेष है !!

agnipusp
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यह रचना देशप्रेम में पागल मान्यवर संतोष भाई के समर्थन में ……………………!!!!
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मरा नहीं है दुर्योधन संग्राम शेष है,
उष्ण लहू पीकर अपनी जिह्वा चटकारे !
गिरे गर्त में उसको प्यारा नहीं देश है,
बेलगाम हय, कौन उसे डांटे-फटकारे !
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“मुंह में राम-छुरी थैली में” इष्ट वाक्य है,
चिकने कदलीपात, अत्यधिक चमड़ी मोटी !
रक्त-मांस का भक्षण करते नहीं शाक्य हैं,
बातें करते राम-कृष्ण की, नीयत खोटी !
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उठो, पार्थ बनकर युवकों गांडीव उठाओ,
रहें युधिष्ठिर स्वर्गलोक में, छोडो उनको !
चक्र सुदर्शन लिए कृष्ण को यहाँ बुलाओ,
मांगो उद्धत भीम, परम योद्धा अर्जुन को !
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भरतवंशियों ! अमृत त्याग कर गरल पियो रे !
मोहपाश तोड़ो, प्रचंड उद्घोष करो रे !
स्त्रैण-भाव को छोड़ वीर की तरह जियो रे !
यम पर ठोको ताल, बढ़ो, रणघोष करो रे !!
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द्रोपदियों के खुले बाल सौगंध दे रहे,
भारत की छाती में खंजर चुभा हुआ है !
कायर घर में घुसकर बगुलामुखी पढ़ रहे,
सारा हिन्दुस्तान रक्त में डुबा हुआ है !
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युवकों छीनो वज्र इंद्र से आगे बढ़कर,
शंकर से उनका पिनाक जाकर मांगो तुम !
शांतिवादियों आँचल में जा छिपो भागकर,
फांसी दे दो इनको शूली पर टाँगों तुम !
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आगे बढ़ो छीन लो सिंहासन क्लीवों से,
छोडो राग विहाग भैरवी तुम गाओ रे !
चल पायेगा नहीं देश कायर जीवों से,
माँ के खुले केश मांगें लोहू लाओ रे !!
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प्रासंगिक हैं नहीं आज उर्वशी – मेनका,
मीरा बाई, राधा गोरी नहीं चाहिये !
युद्धगीत गाओ, मत छेड़ो राग प्रेम का,
श्रृंगारिक स्वप्नों की डोरी नहीं चाहिये !
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दुर्वासा का क्रोध, शिवा का तेज दुधारा,
कहाँ छिपा राणा का वह भाला मतवाला !
तेज करो संग्राम बहाओ शोणित धारा !
बम फोड़ो मर जाय शान्ति चिल्लानेवाला !!

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