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माँ गंगा की पुकार !!!

agnipusp
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GANGA

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अपने ही तट, व्यथित ह्रदय ले, दुखियारी मैं नीर बहाऊँ !
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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एक पुत्र अतुलित उद्योगी, लोग भागीरथ जिसको कहते !
मृत्युलोक में किया अवतरित, मुझे तपश्चर्या के बल से !!
जी में आता स्वर्ग – लोक से पुनः उसे धरती पर लाऊँ !
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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पथ निहारते सदियाँ बीती, कोई तो उद्धार करेगा !
स्वच्छ करेगा मेरे जल को, स्नेह दिखा कर प्यार करेगा !
क्षीण-सूक्ष्म धारा दिखती हूँ, नीर नहीं, क्या नीर बहाऊँ ?
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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राजा तनिक नहीं चिन्तातुर, दरबारी सब चाटुकार हैं !
बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, चापलूस, गप्पी, लबार हैं !!
सिंहासन तक कैसे अपने दिल की पीड़ा को पहुचाऊं !
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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बेटे, तुमलोगों के पुरखों, का मैंने उद्धार किया है !
मेरे जल को छू कितनों ने, भवसागर को पार किया है !
तुम ही बोलो अब क्या अपनी छाती तुमको चीर दिखाऊँ ?
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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अंतिम सांस ले रही हूँ मैं, बस कुछ दिन ही और दिखूंगी !
दुर्बल तन पर इतने बंधन, कितने दिन तक और सहूँगी !
अन्तरमन है चूर थकन से, क्या उछलूँ, मैं क्या लहराऊँ ?
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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ओ मेरे पुत्रों के पुत्रों ! तुम ही अपने कदम बढ़ाओ !
कुछ ऐसा अद्भुत सा कर दो, इतिहासों में नाम लिखाओ !
“सवा अरब बेटों की माता” अखिल धरा पर मैं कहलाऊँ !
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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मेरे तल को गहरा कर दो, बंधन को कम-से-कम कर दो !
प्राण घुट रहे हैं, नवचेतन मिले, पुत्र, ऐसा कुछ कर दो !
पापविनाशिनी पुनः बनूँ मैं, सबको भव से पार कराऊँ !
दुर्दिन की इस व्यथा-कथा को, किससे जाकर कहाँ सुनाऊँ ?
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(आइये, माँ गंगा के उद्धार के लिए तपस्यारत संतों का हम भी
सहर्ष समर्थन करें ! हमारा समर्थन उन आदरणीय संतों को
शक्ति और ऊर्जा देगा !)

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