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अपना ही जो अंश उसे हम कैसे कहें पराया !!

agnipusp
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अपना ही जो अंश उसे हम कैसे कहें पराया !!
अंतर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
.
तनिक नहीं अलगाव, कुक्षि में दोनों ही पलते हैं !
एक वृन्त के सुमन, बराबर दोनों ही खिलते हैं !
एक जननि ने ही दोनों सन्तानों को जनमाया !
अपना ही जो अंश उसे हम कैसे कहें पराया !!
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कुलदीपक बेटा, कुल का प्रकाश बेटी होती है !
दो अनजाने परिवारों में, प्रेम – बीज बोती है !
साजन के घर जाती तज कर पितृवंश की छाया !
अन्तर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
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बेटी तो घर ही रहती, बस नाम बदल जाता है !
वधू रूप में पुनः पिता, बेटी को ही पाता है !!
ससुर-सास में पिता और माता की मिलती छाया !
अन्तर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
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पीकर जिसका रक्त कोख में, हम पैदा होते हैं !
उसी जननि के मातृरूप की, ह्त्या क्यों करते हैं ?
नभ से टपके नहीं हमें, माता ने ही जनमाया !
अन्तर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
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बेटी धरती, पुत्र बीज, दोनों ही आवश्यक हैं !
नाश एक का भी होना मानवता हित घातक है !
बेटा है सूरज, बिटिया तरुवर की शीतल छाया !
अन्तर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
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हममें से ही महापातकी, कुछ ऐसे होते हैं !
बेटा-बेटी में अन्तर का, घृणा-बीज बोते हैं !
पूछे कोई उनसे, ऐसा कर क्या सुख है पाया ?
अन्तर करके सन्तानों में, किसने क्या है पाया ?
अपना ही जो अंश उसे हम कैसे कहें पराया ??

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