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पूंछ दबाये बिल में बैठे, गीदड़, श्वान, सियार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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कहाँ गए वादे संसद के, कहाँ गई वो बातें !
मुद्दे से भटकाने को, करते घातें-प्रतिघातें !
बेशर्मी से भरे झूठ को देख रहा संसार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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बिल में बैठ सुरक्षित खुद को करते हैं महसूस !
इज्जत की परवाह नहीं है, मिले नित्य-प्रति घूस !
धैर्य खो रही है जनता, होकर इनसे बेजार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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घपले-घोटालों में माहिर, वादों के हैं वीर !
कायर मिलकर छोड़ रहे, तीखे शब्दों के तीर !
संविधान को पुनः बनाया है अपना हथियार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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आँचल की ले ओट, वार छिपकर कायर करते हैं !
सीना ताने भरी सभा में आने से डरते हैं !
खुले मंच पर करें सभी आरोपों से इनकार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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गाल बजाते हैं, सोते हैं, रोते हैं संसद में !
हिम्मत हो तो करें सामना आकर जनपरिषद में !
लोकतंत्र को नोंच खा गए, मारी नहीं डकार !
शेरों का समूह जन्तर-मन्तर पर भरे दहाड़ !
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