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सोने की चिड़िया था भारत, कर दिया उसे तुमने गारत !

agnipusp
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सदियों तक तुमने किया राज, पर किस हालत में है समाज !
सोने की चिड़िया था भारत, कर दिया उसे तुमने गारत !
गाँधी ने डंडे खाए थे, आजादी लेकर आये थे !
सब काम किया अच्छा-अच्छा, नेहरु ने दिया उन्हें गच्चा !
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कोमल तन से, कपटी मन से, गांधी को जीत लिया छल से !
कर दिया देश का बंटवारा, सत्ता सुख था इतना प्यारा !
थी देश-प्रेम की चाह नहीं, जनता की कुछ परवाह नहीं !
अंग्रेजों के ही संविधान को मान लिया अपना विधान !
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जो क्रूर शासकों के हित था, जो दमनकारियों के हित था !
जन-मन का ध्यान नहीं रक्खा, गरिमा का मान नहीं रक्खा !
वह भूल बहुत ही भारी थी, जाने कैसी लाचारी थी !
मैकाले की शिक्षा पद्धति, जिसने की बहुत-बहुत दुर्गति !
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तुम सबने उसे सराहा था, बदलाव नहीं कुछ चाहा था !
सबकुछ जन के प्रतिकूल किया, केवल अपने अनुकूल किया !
जिसको कहते हो प्रजातंत्र, वह आज बना है लूट तंत्र !
हितकर बातें अनसुना किया, जनता को बस झुनझुना दिया !
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धोखा तुम सबके नस-नस में, कर लिया देश अपने वश में !
तुम चुनकर संसद में जाते, हम बेबस अपने को पाते !
तुम रोज मनाते दिवाली, जनता की मुट्ठी है खाली !
तुम रोज उड़ाते मालपुवा, हम मरते हैं बिन दवा-दुआ !
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तुम वायुयान से चलते हो, वातानुकूल में पलते हो !
हम पैदल पथ पर चलते हैं, भीषण आतप में जलते हैं !
दिनरात परिश्रम करते हैं, पर भूखे पेट मचलते हैं !
कर इतना लाद दिया हमपर, जो रहें चुकाते जीवन भर !
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तन चीर लहू भी सोख लिया, फिर भी हमने संतोष किया !
जन-जन को धोखे में डाला, विश्वास विखंडित कर डाला !
संसद में बैठे सोते हो, विष – बीज देश में बोते हो !
कहते अपने को माननीय, पर कर्म नहीं अनुकरणनीय !
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अपनी माता के पावन तन, को बेंच जमा करते हो धन !
भारत का विक्रय करने को, धन से अपना घर भरने को !
फिर परदेशी को बुला रहे, उसके सम्मुख दुम हिला रहे !
कर ली विक्रय की तैयारी, इज्जत है नहीं तुम्हें प्यारी !
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परदे के पीछे से रानी, कर रही भयानक मनमानी ! !
उसके तलुवे सहलाते हो, श्वानों सा पूंछ हिलाते हो !
मर्यादा अपनी खो बैठे, दाँतों में जीभ दिये बैठे !
करते हो जम कर घोटाला, कंगाल देश को कर डाला !
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सब एक शाख के उल्लू हो, कलमाड़ी, राजा, लल्लू हों !
इतना पैसा क्या करते हो, बतलाने से क्यों डरते हो ?
रूपयों की चिता बनाओगे, या रुपये को ही खाओगे ?
जाना तो तुम्हें नरक ही है, पड़ता क्या तुम्हे फर्क भी है !
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जीवनभर पाप किया तुमने, जनता का श्राप लिया तुमने !
यह श्राप न तुमको छोड़ेगा, अभिशाप न तुमको छोड़ेगा !
भगवान् समझते क्या खुद को, अमरत्व मिला है क्या तुमको ?
दो गज कपड़ा ही पाओगे, इस मिट्टी में मिल जाओगे !
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जनता को दीन समझते हो, बल से विहीन समझाते हो !
अबतक जो किया वही काफी, भारत से तुम माँगो माफ़ी !
सोये शेरों को मत छेड़ो, पातक से नाता मत जोड़ो !
जनता से रार नहीं करना, उससे तकरार नहीं करना !
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जिस दिन अपनी पर आयेगी, कृत्या बन तुमको खायेगी !
चंडी जब विगुल बजायेगी, धरती छोटी पड़ जायेगी !
जिसके बल पर हो उछल रहे, जनता का हिस्सा निगल रहे !
उसके पापों का भरा घड़ा, उसके सिर पर यमराज खडा !
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वह कैसे तुम्हें बचायेगी, खुद दीन – हीन हो जायेगी !
अब जाग गया है नौजवान, हाथों में ले तरकश-कमान !
फौलादी सीने में उमंग, उत्साह भरा है अंग – अंग !
गजराजों-शेरों का समूह, रचता है जब भी चक्रव्यूह !
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गीदड़ – कुत्ते चिल्लाते हैं, रोते – धोते पछताते हैं !
कोई भी दिशा न पाते हैं, बस मृत्युलोक ही जाते हैं !
तुम भी न राह पर आओगे, तो मिट्टी में मिल जाओगे !
सिर धुन – धुन कर पछताओगे, नेस्तनाबूद हो जाओगे !

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