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जीवन नहीं सिर्फ रंजो-गम, थोड़ा उसको जानें तो !

agnipusp
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जीवन नहीं सिर्फ रंजो – गम, थोड़ा उसको जानें तो !
कदम-कदम पर बिखरी खुशियाँ, हम उसको पहचानें तो !
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छाती है घनघोर घटा, शीतल बयार जब भी चलती !
पिक की मदिर पुकार विजन के पीछे से जब भी उठती !
प्रकृति-सुंदरी पुष्प-वसन से आच्छादित जब हो जाती !
ग्राम्य-वधू उल्लसित हृदय से गीत सुरीले जब गाती !
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उछल-कूद करते बछड़ों की चमक भरी उन आँखों को !
गैया पागुर करे, निहारे, बाल – युवा चरवाहों को !
सुर-दुर्लभ ऐसे दृश्यों की गरिमा हम पहचानें तो !
जीवन नहीं सिर्फ रंजो – गम, थोड़ा उसको जानें तो !
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नन्हा पुत्र – पौत्र गोदी में किलकारी भर पुलक रहा !
कोमल पग से पदाघात कर, मुट्ठी बांधे हुलस रहा !
या उँगली को खींच खिलौने की जिद में हो मचल रहा !
या अभिनेता बन माता की हो उतारता नक़ल रहा !
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करते ही गुदगुदी खिलखिलाता हो हँसते फूलों सा !
यो झूला हो झूल रहा, दोनों बाहों में झूले सा !
मन आह्लादित करनेवाली इन खुशियों को जाने तो !
जीवन नहीं सिर्फ रंजो – गम, हम उसको पहचानें तो !
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श्रम से थककर चूर सांध्य वेला में जब घर आते हैं !
जीवन संगिनि के नयनों में मदिर प्रेम जब पाते हैं !
पुत्र-पुत्रियाँ घेर शिकायत एक-दूजे की करती हैं !
पत्नी मुख पर हाथ रखे हौले-हौले जब हँसती है !
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ऐसी दुर्लभ ख़ुशी और अन्यत्र कहाँ मिल पायेगी ?
सोने-चाँदी से कैसे इसकी तुलना की जायेगी ?
इस नैसर्गिक क्षण से हम अपना परिवेश सजा ले तो !
जीवन नहीं सिर्फ रंजो – गम, हम उसको पहचानें तो !
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मिट्टी की सोंधी सुगंध जब भी धरती से आती है !
पुष्पों की लत्तर मुंडेर पर चढ़ती है, बल खाती है !
चाँद खिला हो आसमान में, तारे भी मुस्काते हों !
खुली हवा में छत पर जीवनसाथी से बतियाते हों !
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क्लेश, द्वेष, आवेश सभी से मुक्त प्रफुल्लित मन होता !
अनुभव होता जैसे सुख-सागर में लगा रहे गोता !
दुनियावी जंजीर तोड़, कुछ देर ज़रा सुस्ता लें तो !
जीवन नहीं सिर्फ रंजो – गम, हम उसको पहचानें तो !

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