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जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?

agnipusp
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जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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कितना दोगला है चरित्र, कितने झूठे इनके वादे ?
मालिक को धोखे में रख, राजा बन बैठे हैं प्यादे !
धर्म – जाति में बाँट देश को, संसद में खुश होते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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क्या चरित्र है, क्या नैतिकता, अजब चाल दोरंगी है !
कांगरेस हो या बी० जे० पी० सबकी नीयत नंगी है !
मंदिर-मस्जिद के पीछे से, जहर-बीज ये बोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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लोकतंत्र का चीरहरण कर, मतवाले बन झूम रहे !
घृणा-द्वेष का जहर बाँटते, गली-गली में घूम रहे !
प्रजा त्रस्त, ये मस्त-मस्त हैं, राजमहल में सोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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कैसे भूख मिटाये बेबस अबला समझ न पाती है ?
दो रातों में एक जून की, रोटी ही मिल पाती है !
फिर भी ये बेशर्म सिर्फ घड़ियाली आँसू रोते है !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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कृषक स्वयं अपनी ही ह्त्या, करने को मजबूर हुआ !
दुःख ही इनका चिर-संगी है, सुख का सपना दूर हुआ !
दाग भरे दामन को कृषकों के लोहू से धोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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मंत्री बनकर खुलेआम ये धमकी देते फिरते हैं !
इनके बागीचों में पैसे, पेड़ों पर भी उगते हैं !
पक्ष-विपक्ष साथ घपलों के सपने नए सँजोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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पूंजीपति डुगडुगी बजाये, ये मरकट सा नाच रहे !
जांच कराये जाने की जिम्मेदारी से भाग रहे !
शर्म-हया को त्याग पापियों के पैरों को धोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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गिद्ध नोचता मुर्दे को, वैसे ही मिलकर नोच रहे !
भूमिहीन दलितों को लेकर, कभी नहीं कुछ सोच रहे !
संविधान के रक्षक हैं या शैतानों के पोते हैं ?
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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चोर-लुटेरे अपने घर में चोरी कभी न करते हैं !
अपना ही घर लूट नहीं वे अपनी जेबें भरते हैं !
ये पापी हँस-हँस कंधे पर माता का शव ढोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?
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अनाचारियों अब तो चेतो, जाग गया बच्चा-बच्चा !
घोटालों को त्यागो, कुछ तो काम करो अच्छा-अच्छा !
भूखे जन बेबस होकर आँसू से गाल भिगोते हैं !
जन – सेवक ऐसे हैं तो फिर डाकू कैसे होते हैं ?

(chitr gugal se saabhaar)

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