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क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?

agnipusp
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कोने में बैठा लोकतन्त्र, लज्जित नयनों से देख रहा !
दे रहा चुनौती ताल ठोक, नापाक “पाक” अभिमानी है !
बेटे का सर ले गया काट, तुम बने नपुंसक देख रहे,
क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?
.
लाचार हुए हो क्यों इतने ? क्योंकर इतनी बेशर्मी है ?
चुप राजमहल में बैठे हो, जब सीमा पर सरगर्मी है !
अब करना और भरोसा इनपर, बहुत बड़ी नादानी है,
क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?
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ललकार रहा है बार-बार, माता का आँचल खींच रहा,
चुपके से खूनी हाथ बढ़ा, गर्दन हम सब की भींच रहा !
चाहे जितना तुम समझाओ, करता अपनी मनमानी है,
क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?
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चूहे सा बिल में घुस जाओ, कुछ तुमसे अगर नहीं होता,
चुटकी भर शर्म तुम्हें होती, तो क्यों सारा भारत रोता !
अब तो लगता है कभी-कभी, यह तुम सब की शैतानी है,
क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?
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पल्लूसेवी वीर गुलामों, अगर नहीं कुछ कर सकते,
जनता सब सुलझा लेगी, पीछे हट कर हो जाओ खड़े !
पलभर में फिजाँ बदल देंगे, हम ऐसे हिन्दुस्तानी हैं,
क्यों आग नहीं लगती दिल में, क्या खून हो गया पानी है ?

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